Shodashi - An Overview

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ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः: ॐ ह्रीं श्रीं क ए ऐ ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं सौः: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं 

साहित्याम्भोजभृङ्गी कविकुलविनुता सात्त्विकीं वाग्विभूतिं

आर्त-त्राण-परायणैररि-कुल-प्रध्वंसिभिः संवृतं

साम्राज्ञी चक्रराज्ञी प्रदिशतु कुशलं मह्यमोङ्काररूपा Shodashi ॥१५॥

ह्रीं ह स क ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं

ईड्याभिर्नव-विद्रुम-च्छवि-समाभिख्याभिरङ्गी-कृतं

ह्रीङ्काराम्भोजभृङ्गी हयमुखविनुता हानिवृद्ध्यादिहीना

सा नित्यं नादरूपा त्रिभुवनजननी मोदमाविष्करोतु ॥२॥

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः॥

॥ अथ श्री त्रिपुरसुन्दरीवेदसारस्तवः ॥

कर्त्री लोकस्य लीलाविलसितविधिना कारयित्री क्रियाणां

वाह्याद्याभिरुपाश्रितं च दशभिर्मुद्राभिरुद्भासितम् ।

श्रीमद्-सद्-गुरु-पूज्य-पाद-करुणा-संवेद्य-तत्त्वात्मकं

स्थेमानं प्रापयन्ती निजगुणविभवैः सर्वथा व्याप्य विश्वम् ।

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